बस के सफर में का मजा आथे तेला तो गवंई गांव के रद्दा में जेहा बस के सफर करे होही तिही बता सकत हे। सहर वाला बस मन हा तो बस सवारी ढोवत रइथे, बस के असली मजा तो गांव के मनखेच मन हा पाथे। मेहा कई घांव मजा ले डरे हंव। कहां, काबर, काकर करा गे रेहेंव ये सब ल भुला जहूं फेर बस के मजा ल मेहा नई भुला सकंव।
सबले पहिली तो मोटर स्टेन म जतका बस खड़े रइथे तेमा के सबले खटारा बस ल देख के जान डरथन कि मोला इही बस हा मोर ठऊर म पहुंचाही ताहन घंटा दू घंटा ओहा कब जाही कइके अगोरथन। अऊ बस ल जतका बेर चालू करना रथे त ओला अब्बड़ झन मनखे बिदाई दे बर बस के पाछू म आ जथे, तोला तिर म देखही त तहू ल बुला के थोक-थोक सबो झन हांथ लगाओ कइके बस ल ढकेल के बिदा करथे। बस हा मोटर स्टेन ले निकलथे त रफ्तार के तो झन पुछ! “धीरे चलो-सुरक्षित चलो” नियम के पुरा पालन करे जाथे। बाजू में रेंगत मनखे, साईकिल अऊ बईला गाड़ी मन बस ले अघवा जथे। अऊ जब बस हा मटक-मटक के रेंगथे त आघू-पाछु लचकथे कई घांव उदकबे त कभु बाजू वाला ऊपर झपाबे अइसन में बइठे-बइठे योग घलो हो जथे। अऊ रद्दा के गड्ढा में बस हा जझरंग-जझरंग कुदथे त ऊड़न खटोला म झुले असन लागथे। कहूं बस खाली हे त दू-तीन झन चलईया (ड्राइवर)अऊ तीन-चार झन पईसा झोंकईया (कंडेक्टर) बइठे रथे अऊ गोठ ल सुनबे त बस के जानकारी, बस मालिक मन के चारी अऊ संगे संग ठऊर के पहुंत ले मया पिरीत, राजनीति, सामाजिक अऊ देस परदेस के गोठ बात घलो सुने ल मिलथे।
बस में आघू के बहुत अकन सीट हा माई लोगन मन बर रइथे, बस में “५०% महिला आरक्षित” लिखाय घलो रइथे। फेर बस वाला (ड्राइवर,कंडेक्टर) अऊ उखर ले परिचित मनखे मन बर नियम लागू नई होवय। बस म सियान मनखे मन के बड़ सम्मान होथे, मेहा सीट दे के बात नई करत हंव! सीट मिलही की नही तेहा तो किस्मत के बात आय। फेर कोनहो सियान बिड़ी पियत रथे तेला कोनहो मना नई करे ऐखर ले बढ़के सियान मनखे के सम्मान अऊ का हो सकत हे! आजकल तो गुटखा घलो परसाद असन बांट के खाय जाथे एक ठन झिल्ली ल चिर के तीन झन थोक-थोक खाथे। अऊ तिर में बइठे मनखे ल ओकर मन बर उपवास राखे ल परथे, काबर कि मुहु अतका बस्सावत रइथे कि ओला सुरता करके दू दिन ले भात-बासी तो अइसनेच नई खवाय।
बस म छोकरी चइगही त “आईये मैडम आगे बैठिये” अऊ सियानिन चइगही त “चल डोकरी पाछु के सीट खाली हे ओमे बईठ अऊ तोर मोटरा ल ऊपर म राख” कइके बइठारथे। टिकिट घलो नई दे, कोनहो करा टिकिट कीमत सूची घलो नई चपकाय, अब सात लाख के बस म सात रुपिया देके बइठबे त कहीं काहत घलो तो नई बने! अऊ टिकिट बर चिल्हर राखना जरूरी हे, बड़े नोट देबे त चार ठन भजन सुने ल पड़ सकत हे, तोर बाचे पईसा ल तोर उतरे के बेरा दुहूं कइके कंडेक्टर हा राखे रइथे, अब दिही घलो धुन भुला जही भगवान कइके जीव उही डाहर लगे रइथे। कतको ठन बस हा एके मालिक के रइथे त ड्राइवर, कंडेक्टर मन हा बीच रद्दा म बदल जथे ओला देख के अइसे लागथे जइसे येहा कंडेक्टर नो हरय हमर जिला के कलेक्टर हरे जेहा हर बछर बदलत रइथे।
हमर देस म सवा सौ करोड़ के आबादी हावय कइथे, अऊ हमर जनसंख्या ल बाढ़े ले रोकना हे कहे जाथे। ओ गोठ मन हा बस के भीड़ ल देख के सिरतोन लागथे। भक्कम भीड़ म कोनहो काकरो ऊपर उछरत हे, सहरी बाबू के बुट हा गोड़ ल कुचरत हे, लईका अपन महतारी ल छोड़ दुसर के अचरा ल चुचरत हे। अऊ एक झन माई लोगन ल तो काहत सुने हंव कि “येला तो मेहा जेठ मानथंव, मोला दुसर जगा बइठार दव” फेर बस म खड़े होय के ठऊर नई हे त अलग सीट कहां ले मिलही। अब जेठ के दंदियात मऊसम राहय, चाहे जेठ के नत्ता राहय जम्मों गोठ ल सोंचबे त बस म बइठ घलो नई सकस।
मेहा सुने रेहेंव कि हमर देस में तीन/चार सौ कि.मी. हर घंटा के रफ्तार ले गाड़ी चलही त मोला ये गोठ हा सपना देखे सही लागिस। काबर की मोर गांव हा सहर ले पचास कि.मी. के धुरिहा हावय अऊ तीन घंटा के पहिली एको ठन बस हा नई पहुंचावय त रफ्तार हा हर घंटा कतका कि.मी. होइस तेला गुनव अऊ बस मन के नाव कईसे रथे तहू ल देखव, लक्ष्मी, शारदा, बालाजी, दुर्गा, शिवा अइसन देवी देवता के नाव ल पढ़ के टुटहा बस म चइघबे त अइसे लागथे जइसे इही मोर अंतिम यात्रा हरय। अऊ पवनपुत्र, पुष्कर, जटायु, चेतक ये सब नाव हा पल्ला दऊड़े बर जाने जाथे, इखर बरोबरी घलो नई हो सकय। घिलरत बस मन के अइसन-अइसन नाव राखना घलो हांसी ठिठोली करे सहीं लागथे। फेर बस हा ठऊर म पहुंचे के पांच कि.मी. पहिली अइसे रफ्तार धरथे कि रेलगाड़ी घलो पछुवा जाही। गढ्ढा-खचका, ब्रेकर हा एक मई हो जथे, कुकरी-बोकरा मन हा ऐती ओती भाग के अपन जीव ल बचाथे, साईकिल, मोटरसाइकिल वाला मन हा पाई में उतार देथे। बस वाला मन हा समय के बड़ धियान राखथे कनहो जतन करके तीन घंटा में पचास कि.मी. धुरिहा ठऊर म पहुंचइच देथे।
अऊ बस के दसा ल तो झन पुछ! खिड़की में कांच नइये, धुंआ के जांच नइये, मिठ काकरो बांच नइये, लट्टू बर खांच नइये। रंग रोगन तो ओदर जायेच रथे, अऊ बस के आरा पाटा मन घलो केप-केप करत रथे। मोर बइठे ले बस के जीव तो नई छूट जही सोच के नंगत करलई लागथे। हारन बाजे ते झन बाजे, हाँ फेर टेप म गाना खच्चित बाजही, जुन्ना-जुन्ना गाना म चलईया हा अइसे रमे रइथे कि हर बखत बस ल ठउर ले आघू बढ़इच के रोकथे। अऊ लागथे कि अइसन बस मालिक मन के समधी, सगा, संगवारी मन हा परिवहन विभाग में बुता करत होही तभे तो येमन ल सबो नियम-कानून ल छोड़ के बस ल बिना जांचे परमिट मिल जथे। फेर मेहा अब एक बात जान डरे हंव गंवई गांव के रद्दा में बस के सफर नानमुन जीव वाला मनखे के बुता नो हरय।
ललित साहू “जख्मी”
छुरा, जिला – गरियाबंद (छ.ग.)
9993841525